भारत ने अमेरिकी F-35 लड़ाकू विमान प्रस्ताव की आलोचना की, रूस ने Su-57 के स्थानीय उत्पादन की पेशकश की
भारत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा F-35 लड़ाकू विमानों की बिक्री के प्रस्ताव की कड़ी आलोचना हो रही है। विपक्षी दलों ने इस डील को महंगा और तकनीकी रूप से कमजोर बताते हुए सरकार को घेरा है। इसी बीच, रूस ने अपने अत्याधुनिक Su-57 लड़ाकू विमानों को भारत में ही निर्मित करने का प्रस्ताव दिया है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “मेक इन इंडिया” पहल के अनुरूप है। भारतीय सरकार फिलहाल किसी भी प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय लेने से बच रही है।
भारत में F-35 को लेकर विवाद क्यों?
अमेरिका ने भारत को 2025 से अपनी सैन्य बिक्री बढ़ाने का आश्वासन दिया है और भविष्य में लॉकहीड मार्टिन के F-35 स्टील्थ लड़ाकू विमान देने की पेशकश की है। हालांकि, भारत के विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस ने इस सौदे की आलोचना करते हुए इसे आर्थिक और तकनीकी रूप से अव्यवहारिक करार दिया है।
कांग्रेस ने अमेरिकी अरबपति एलन मस्क की टिप्पणी का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर तंज कसा। एक सोशल मीडिया पोस्ट में कांग्रेस ने कहा,
“F-35, जिसे एलन मस्क ने ‘कबाड़’ कहा है, नरेंद्र मोदी इसे खरीदने पर क्यों तुले हैं?”
एलन मस्क ने 2024 में एक पोस्ट में F-35 को अप्रचलित बताते हुए ड्रोन स्वार्म्स को भविष्य की सैन्य शक्ति कहा था। कांग्रेस का दावा है कि F-35 अत्यधिक महंगा है और इसके रखरखाव की लागत भी बहुत अधिक है। अमेरिकी सरकार के अनुसार, एक F-35 की कीमत लगभग 80 मिलियन डॉलर (लगभग 665 करोड़ रुपये) है।
रूस ने Su-57 के लिए “मेक इन इंडिया” प्रस्ताव दिया
F-35 को लेकर उठते विवाद के बीच, रूस ने भारत को अपने पांचवीं पीढ़ी के Su-57 स्टील्थ फाइटर जेट्स के स्थानीय निर्माण की पेशकश की है।
रूसी रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यदि भारत यह प्रस्ताव स्वीकार करता है तो इसका उत्पादन 2025 के अंत तक शुरू हो सकता है। इस डील के तहत भारत में ही Su-57 के कई कंपोनेंट्स बनाए जाएंगे, जिससे देश में रक्षा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
रूसी अधिकारियों ने यह भी कहा कि वे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Technology Transfer) में कभी पीछे नहीं रहे हैं, जिससे भारत को स्वदेशी रक्षा क्षमताएं विकसित करने में मदद मिलेगी।
क्या भारत अमेरिका या रूस के साथ जाएगा?
भारतीय वायुसेना (IAF) वर्तमान में अपने स्क्वाड्रन की संख्या बढ़ाने के प्रयास में है, जो स्वीकृत 42 स्क्वाड्रन से घटकर 31 रह गई है। चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की बढ़ती सैन्य शक्ति को देखते हुए भारत को जल्द निर्णय लेना होगा।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने रक्षा संबंधों को संतुलित करना चाहेगा। रक्षा मंत्रालय के पूर्व वित्तीय सलाहकार अमित कौशिश के अनुसार,
“हम रूस से तेल और अन्य रक्षा उपकरण खरीदना जारी रख सकते हैं, लेकिन अमेरिका के साथ किसी बड़े सौदे से रणनीतिक जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।”
निष्कर्ष
भारत के लिए F-35 और Su-57 दोनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं। अमेरिका का F-35 तकनीकी रूप से उन्नत है, लेकिन यह महंगा और उच्च रखरखाव वाला है। दूसरी ओर, रूस का Su-57 अपेक्षाकृत सस्ता और “मेक इन इंडिया” के अनुकूल है, लेकिन इसका उत्पादन और कार्यान्वयन समय ले सकता है।
भारतीय सरकार ने अभी तक किसी भी पक्ष को अंतिम स्वीकृति नहीं दी है, लेकिन आने वाले महीनों में यह फैसला भारत की रक्षा नीति और वैश्विक साझेदारी को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।